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Meaning, Definition And Nature Of Media Notes In Hindi, Study Material For Journalism

Meaning, Definition And Nature Of Media, Notes In Hindi, Study Material (मीडिया का अर्थ, परिभाषा व प्रकृति नोट्स व अध्यन सामग्री)

Meaning, Definition And Nature Of Media Notes In Hindi
Meaning, Definition And Nature Of Media Notes In Hindi


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Meaning Of Media (मीडिया का अर्थ)

'मीडिया' शब्द लैटिन भाषा के शब्द मीडियम से
निकला है, इसका अर्थ माध्यम है। यह शब्द “रिपोर्ट्स" को सम्बोधित नहीं करता है। वास्तव में जब प्रिण्ट, रोडियो एवं टेलीविजन की सामूहिक रूप से बात की जाती है तो यह मीडिया बन जाता है, अर्थात्‌ इसमें प्रिण्ट और इलेक्ट्रॉनिक दोनों मीडिया शामिल हैं।
मीडिया एक ऐसा माध्यम है, जिसके द्वारा सूचनाओं का आदान-प्रदान किया जाता है। चूँकि मनुष्य स्वभाव से ही जिज्ञासु प्रवृत्ति का रहा है एवं वह देश-दुनिया में घटित घटनाओं की जानकारी लेने में रुचि लेता है, अत: उसकी इसी प्रवृत्ति को उल्लेखनीय रूप से शान्त करने के लिए 'मीडिया' का जन्म हुआ। वर्तमान इसका दायरा विस्तृत रूप ले चुका है।

Definition Of Media (मीडिया की परिभाषा)

मीडिया की विभिन्न पत्रकारों एवं लेखकों ने निम्न परिभाषाएँ दी हैं -
डनिस मैक्वील के अनुसार, “मीडिया समाज परिवर्तन की यन्त्र शक्ति है।''

रश्मि बोहरा के अनुसार, “मीडियां समाज का दर्पण है।''

आर के मजूमदार के अनुसार, “मीडिया वह माध्यम हैं, जिसके द्वारा समाज शिक्षित होता है।''

कृष्ण कुमार के अनुसार, “मीडिया वह साधन है, जिसके द्वारा नागरिकों को उनके अधिकारों का आभास होता रहता है।'' 


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Object Of Media (मीडिया का उद्देश्य)

मीडिया का मूल उद्देश्य सूचना देना, शिक्षित करना तथा मनोरंजन करना है। 
सम्पूर्ण मीडिया इन्हीं तीन उद्देश्यों के सार तत्त्वों को अपने भीतर समाहित किए हुए है। मीडिया संचार का एक सशक्त माध्यम है। यह अपनी बहुमुखी प्रवृत्तियों के कारण व्यक्ति और
समाज के जीवन की गहराई की अनुभूति कराता है। समाज का कोई भी पक्ष-हो, राष्ट्र की कोई भी चिन्ता हो, वह मीडिया के द्वारा ही फलीभूत होती है। यही वजह है कि, सामाजिक, धार्मिक, रूढ़ियों तथा आडम्बरों के खिलाफ मीडिया निरन्तर संघर्ष करता है। लोकहित, लोक-कल्याण उसका प्रमुख पक्ष रहा है। वह जनता को शिक्षित करने से लेकर उस तक सच-झूठ की वास्तविकता को सामने लाने का सूत्रधार रहा है।

Nature Of Media (मीडिया की प्रकृति)

1. संचारक एवं प्राप्तकर्ता के बीच सीधा सम्बन्ध नही  मीडिया के विभिन्‍न साधन चाहे वह समाचार-पत्र हो अथवा टेलीविजन हो या फिर इण्टरनेट/कम्प्यूटर हो, इन सबका क्षेत्र काफी व्यापक होता है। ये एक साथ हजारों-लाखों लोगों तक एक साथ पहुँचते हैं। इस प्रकार कहा जाता है कि संचारक अर्थात्‌ जो सूचना प्रदान कर रहा है, उसके और प्राप्तकर्ता के बीच कोई सीधा सम्बन्ध नहीं होता।

2. सन्देशों की प्रकृति सार्वजनिक होती है मीडिया के द्वारा जो भी सन्देश भेजे जाते हैं, सूचना दी जाती है, वह सभी के लिए होती है, किसी व्यक्ति विशेष के लिए नहीं। समान रूप से ये सभी सूचनाएँ एक साथ सभी को प्राप्त होती है, इसलिए ये सार्वजनिक होती है। 

3. फीडबैक तुरन्त नहीं मीडिया में जो कुछ दिखाया जाता है अथवा  प्रकाशित किया जाता है, उसका फीडबैक (प्रतिपुष्टि) तुरन्त प्राप्त नहीं होता है। हालांकि 'लाइव' कार्यक्रमों में फीडबैक तुरन्त मिल जाता है।

4. औपचारिक संगठन की आवश्यकता मीडिया के लिए एक औपचारिक संगठन की आवश्यकता है, जहाँ से इसकी कार्य-प्रणाली संचालित की जाती है। सूचनाओं को गन्तव्य तक पहुंचाया जाता है।

Scope Of Media (मीडिया का कार्यक्षेत्र)

सूचना उपलब्ध कराना 

मीडिया का सर्वप्रथम कार्य जन-मानस तक सूचनाओं को उपलब्ध कराना है। सूचनाएँ समाज के विभिन्‍न मुद्दों पर आधारित हो सकती है, अन्तर्राष्ट्रीय एवं राष्ट्रीय स्तर की भी हो सकती है।

शिक्षित करना 

मीडिया का दूसरा महत्त्वपूर्ण कार्य लोगों को शिक्षित करना है। ऐसे कार्यक्रम प्रसारित किए जाते हैं, जिनसे समाज में शिक्षा फैलती है। समाचार-पत्र ऐसे आलेख प्रकाशित करते हैं, जो समाज से जुड़े होने के साथ-साथ समाज के हर वर्ग को शिक्षित करता है।

मनोरंजन करना 

मीडिया द्वारा सूचनाएं एवं शिक्षा प्रदान करने के बाद तीसरा कार्य मनोरंजन करना होता है। लोगों का स्वस्थ मनोरंजन करना मीडिया का दायित्व है।

निगरानी करना 

मीडिया का एक बड़ा कार्य निगरानी करना है। ये निगरानी ऐसे मामलों से सम्बन्धित है, जिनसे समाज दूषित होता है। भ्रष्टाचार के मामलों को उजागर करना, कुछ गलत होते देख, उसे जनता के सामने लाना मीडिया की “निगरानी” में ही आता है।
विचार-विमर्श के लिए मंच उपलब्ध कराना 
मीडिया विचार-विमर्श के लिए मंच उपलब्ध कराती है। समाचार-पत्रों में किसी विषय विशेष पर पाठकों
की राय माँगी जाती है एवं साथ ही उस मुद्दे से जुड़े विशेषज्ञों की राय भी प्रकाशित की जाती है। इसके अलावा टीवी चैनलों पर सामूहिक चर्चा, वाद-विवाद का मंच उपलब्ध कराकर मीडिया लोगों को वैचारिक स्वतन्त्रता प्रदान करती है।

स्मरणीय तथ्य

समाचार सेवा प्रभाग प्रतिदिन 647 बुलेटिनों को प्रसारित करता है। इसमें 56 घण्टे और 90 भाषाओं |बोलियों में समाचार होते हैं।

23 नवम्बर, 1997 को प्रसार भारती का गठन किया गया था।

भारत में इण्डिया ब्रॉड कास्टिंग सर्विस के नाम से वर्ष 1936 में रेडियो प्रसारण हुआ, जिसका नाम अब ऑल इण्डिया रेडियो (आकाशवाणी) है।

केन्द्र सरकार ने दिसम्बर, 2002 में शैक्षिक संस्थानों को सामुदायिक रेडियो लाइसेंस दिए जाने की नीति की घोषणा की थी।

केन्द्र सरकार ने एफएम चरण- नीति वर्ष 1999 में लागू की थी।

प्रसार भारती ने 26 जनवरी, 2002 को डीडी भारती चैनल का शुभारम्भ किया था।

दूरदर्शन ने दिसम्बर, 2004 में 33 टीवी चैनलों के साथ निःशुल्क डीटीएच (डायरेक्ट टू-होम) सेवा शुरू की थी।


Effects Of Media On Society (मीडिया के समाज पर प्रभाव)

TV And Society (टेलीविजन और समाज)

टेलीविजन मूलत: ग्रीक शब्द टेली और लैटिन शब्द विजन से मिलकर बना है। टेली का शाब्दिक अर्थ है- 'दूरी पर' और 'विजन' का अर्थ है- 'देखना'। इसका तात्पर्य हुआ कि जो दूर की चीजों का दर्शन कराता है, वह दूरदर्शन है। दूरदर्शन तरंगों के माध्यम से एक साथ दृश्य और आवाज दोनों को सुदूर स्थलों तक तीव्र गति से भेजता है। टेलीविजन आधुनिक विज्ञान की महत्त्वपूर्ण उपलब्धि है।

टेलीविजन मनोरंजन एवं सूचना प्राप्ति का सबसे आकर्षक और प्रभावी मास मीडिया है। दूरदर्शन का पहला प्रसारण 15 सितम्बर, 1959 में दिल्‍ली से शुरू किया गया। सामाजिक विकास एवं देश की अर्थव्यवस्थाओं को सक्षम बनाने की दिशा में दूरदर्शन अग्रणी भूमिका निभा रहा है। वर्तमान में देश में 300 टेलीविजन चैनलों से कार्यक्रमों का प्रसारण  होता है। उल्लेखनीय है कि वर्ष 1975 में भारत में उपग्रह द्वारा शिक्षा प्रदान करने के लिए उपयोग किया गया।

इसे सैटेलाइट इंस्टूक्शनल टेलीविजन एक्सपेरिमेण्ट का नाम दिया गया। इस तकनीक से सुदूर इलाकों के ग्रामीण क्षेत्रों में भी पहुंचना सम्भव हो सका। इसके द्वारा करीब 2,330 गाँवों में कृषि, स्वास्थ्य, परिवार नियोजन, सामाजिक शिक्षा, प्राथमिक एवं प्रौढ़ शिक्षा से सम्बन्धित विकासात्मक कार्यक्रम
प्रसारित किए जाने लगे। इससे सामाजिक परिवर्तन को बढ़ावा मिला। यह आज के संचार माध्यमों में सबसे बड़ा एवं महत्त्वपूर्ण माध्यम है।

Radio And Society (रेडियो और समाज)

रेडियो श्रव्य संचार साधनों के रूप में अत्यन्त उपयोगी और महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। आजादी के समय भारत में छः रेडियो स्टेशन और 18 ट्रांससीटर थे और देश की 11% आबादी और 2.5% क्षेत्र इसके प्रसारण दायरे में आते थे। आज प्रसार भारती रेडियो के नेटवर्क में 232 स्टेशन और 171 एफएम ट्रांसमीटर है और देश की 99.18% जनसंख्या तथा 91.42% क्षेत्र इसके दायरे में आता है।

आकाशवाणी अपनी गुणवत्ता के कारण पूरे देश में लोकप्रिय रही है। ग्रामीण श्रोता मण्डलों की स्थापना से देहाती जनता में नवचेतना का प्रादुर्भाव देखा जा सकता है। आकाशवाणी द्वारा देश की सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक तथा ऐतिहासिक
क्षेत्र में उन्नति हो रही है। आकाशवाणी केन्द्रों में आम नागरिकों के लिए कार्यक्रम प्रसारित किए जाने के साथ-साथ विशिष्ट वर्गों एवं विद्यार्थियों, महिलाओं, श्रमिकों, किसानों, बच्चों और युवाओं के लिए अलग से कार्यक्रम प्रसारित किए जाते हैं।

Cinema And Society (सिनेमा और समाज)

सिनेमा हमारे जीवन की गति को लयबद्ध रूप में एवं कलात्मक दृष्टि से हमारे सम्मुख प्रस्तुत करता है। सिनेमा से जुड़े अधिकांश लोगों के लिए सिनेमा अनुभव और अन्वेषण का माध्यम है। 7 जुलाई, 1896 को ल्युमियर ब्रदर्स ने बम्बई में 6 लघु फिल्मों का प्रदर्शन किया। कोकोनट फेयर नामक फिल्म को भारत में 1897 ई. में फिल्माया गया। प्रथम भारतीय फिल्म निर्माता हरिश्चन्द्र सखाराम भावडेकर थे, जिन्होंने 1899 ई. में “दी रेस्टर्स मैन एण्ड मंकी" फिल्म बनाई।

मूक फिल्मों के बाद सवाक फिल्मों का दौर शुरू हुआ। सर्वप्रथम बोलने वाली फिल्म आलमआरा का निर्माण आर्देशिर ईरानी द्वारा किया गया। इस फिल्म का प्रदर्शन 14 मार्च, 1982 को बम्बई के मैजेस्टिक सिनेमा में हुआ। वर्ष 1931 में ही दक्षिण भारत में भक्त प्रहलाद (तेलुगू) और कालिदास (तमिल) सवाक फिल्में बनीं। 

मास मीडिया के सबल माध्यम के तौर पर फिल्मों का आविर्भाव चौथे दशक में हुआ। समाज और संस्कृति के अधोपतन को प्रस्तुत कर फिल्मों ने भारतीय जनमानस के उत्थान में योगदान किया है। वी. शान्ताराम की दुनिया ना माने, आदमी, पड़ोसी, देवकी बोस की. विद्यापति और सीता, पीसी बरुआ की देवदास और मुक्ति, नितिन बोस की बड़ी बहन, फ्रेज ऑस्टिन की अछूत कन्या, वी दामले और फतेलाल की सन्त तुकाराम, महबूब का वतन, एक ही रास्ता और औरत जैसी फिल्मों ने कुरीतियों को मिटाने की सीख दी। इस दौर की अधिकांश फिल्में सामाजिक अन्तर्विरोधों पर आधारित है।


मीडिया समाज का दर्पण

मीडिया समाज को दर्पण दिखाने का कार्य कर रही है, सही बात को नकारा नहीं जा सकता, लेकिन उस दर्पण में लोगों को अपना प्रतिरूप आदर्श लग रहा है। समाज का प्रतिबिम्ब देख बदलने के स्थान पर उसी में ढलते जा रहे हैं। यह मीडिया के लिए विचारणीय प्रश्न है। अगर एक दशक के सिनेमा पर विहंगम दृष्टि डालें तो 20% सिनेमा में स्कूल या कॉलेजों के चरित्र को दर्शाया गया है।

ब्लैक, तारे जमी पर और थ्री इडियट को अपवाद मान लिया जाए तो बाकी के सिनेमा में स्कूल या कॉलेजों के भोंड़े स्वरूप को ही प्रस्तुत किया गया है और उसी की नकल स्कूल और कॉलेजों में शुरू हो गई है। इण्टरनेट समाज के लिए वरदान है, लेकिन कुछ अश्लील वेबसाइट से युवा पीढ़ी गुमराह भी हो रही है। इस पर भी विचार की आवश्यकता है।


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