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Press and registration of book act 1867 | Indian official secrets act 1923 in Hindi

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Press and registration of  book act 1867 प्रेस और पुस्तक पंजीकरण अधिनियम 1867
                         Press and registration of  book act 1867 


Press and registration of  book act 1867 प्रेस और पुस्तक पंजीकरण अधिनियम 1867

पुस्तक प्रकाशन ( Book Publication )

वर्तमान समय में भारत में पुस्तकों के प्रकाशन पर प्रेस और पुस्तक पंजीकरण अधिनियम, 1867 के प्रावधान लागू होते हैं। यह अभी तक
अस्तित्व में रहने वाले कुछ सबसे पुराने कानूनों में से एक है। इस अधिनियम का उद्देश्य मुद्रणालयों और उनके प्रकाशनों के बारे में जानकारी एकत्र करना, भारतीय क्षेत्र से प्रकाशित प्रत्येक पत्र-पत्रिका व पुस्तक की प्रतियां सुरक्षित करना, प्रेस तथा पत्र-पत्रिकाओं का नियमन करना तथा गुमनाम प्राहित्य के प्रकाशन को प्रतिबन्धित करना है। इस अधिनियम के द्वारा प्रेस का नियन्त्रण न करके उसका नियमन किया जाता है। इस अधिनियम के अस्तित्व में होने के कारण, भारतीय संविधान के अनुच्छेद, 1912) में दी गई मीडिया की स्वतन्त्रता के अधिकार का किसी भी प्रकार उल्लंघन नहीं होता है |

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Press and registration of  book act 1867 


प्रेस और पुस्तक पंजीकरण अधिनियम ब्रिटिश सरकार द्वारा 1867 ई. में लागू किया गया। इस अधिनियम को बनाने के पीछे अंग्रेज सरकार की एक मंशा, प्रेस/मीडिया पर सरकारी अंकुश रखने की भी थी, इसलिए मूल अधिनियम में अंग्रेज सरकार द्वारा कई ऐसे प्रावधान रखे गए थे, जिनके कारण प्रेस स्वतन्त्र होकर अपना काम न कर सके और प्रेस जनता को सरकार के खिलाफ भड़का न सके। स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद जब भारत एक पूर्ण गणतन्त्र बना और यहाँ एक नयां संविधान लागू हुआ, तो भारतीय नागरिकों को वाक-स्वतन्त्रता और अभिव्यक्ति को स्वतन्त्रता का मौलिक अधिकार भी मिल गया, इसलिए प्रेस और पुस्तक पंजीकरण अधिनियम, 1867 के कुछ प्रावधानों को या तो रद्द कर दिया गया है या फिर उन्हें भारतीय संविधान की मूल भावना के ,अनुरूप संशोधित कर दिया गया है।

समाचार - पत्र

'समाचार-पत्र' शब्द युग्म को विभिन्‍न विशेषज्ञों द्वारा कई प्रकार से परिभाषित किया गया है। लेकिन इसकी सर्वमान्य और प्रामाणिक परिभाषा वही मानी जाती है, जो प्रेस और पुस्तक पंजीकरण अधिनियम, 186 में दी गई है। इस अधिनियम के अनुसार, 'समाचार-पत्र' कोई भी मुद्रित निश्चित अवधि में प्रकाशित होने वाला पत्र है, जिसमें सार्वजनिक समाचार या ऐसे समाचारों पर टिप्पणियाँ हों।

सम्पादक

इस अधिनियम में 'सम्पादंक' शब्द को भी परिभाषित किया गया है। अधिनियम की परिभाषा के अनुसार, “सम्पादक से वह व्यक्ति अभिप्रेत है, जो समाचार-पत्र में प्रकाशित होने वाली सामग्री के चयन पर नियन्त्रण रखता है।" प्रकाशित सामग्री के लिए सभी प्रकार से सम्पादक को ही उत्तरदायी माना जाता है।

1. अधिनियम के अनुसार कोई भी भारतीय नागरिक , किसी समाचार-पत्र का प्रकाशन शुरू कर सकता है (कुछ अपवादों को छोड़कर), लेकिन उस प्रकाशक का चरित्र आदि अच्छा होना चाहिए।

2. 'भारत के समाचार-पत्रों के पंजीयक' के कार्यालय में आवेदन-पत्र की जाँच की जाती है और यदि वह नियमानुसार होता है तथा आवेदन में प्रस्तावित कोई शीर्षक उपलब्ध होता है, तो आवेदक के “शीर्षक' को उसके नाम से पंजीकृत करके वह शीर्षक, आवेदक को आबण्टित कर दिया जाता है।

3. जब पंजीयक द्वारा कोई शीर्षक स्वीकार (पंजीकृत) किया जाता है तो वह इसकी सूचना आवेदक को देता है। यह स्वीकृति एक निर्धारित प्रपत्र में दी जाती है, जिसमें अन्य बातों के अलावा उन शर्तों का भी उल्लेख होता है, जिनके पालन करने की अपेक्षा, प्रकाशक से की जाती है।

4. पत्र का प्रकाशन शुरू करने से पूर्व प्रकाशक को एक “घोषणा-पत्र' निर्धारित प्रारूप में सक्षम मजिस्ट्रेट के सम्मुख प्रस्तुत करना होता है। इस घोषणा-पत्र में पत्र के सम्पादक, प्रकाशक और मुद्रक का नाम तथा पत्र के मुद्रण व प्रकाशन के स्थानों (पतों) की जानकारी देना भी अनिवार्य होता है।

5. भारत के समाचार-पत्रों के पंजीयक द्वारा शीर्षक को स्वीकृति देने और सक्षम मजिस्ट्रेट द्वारा घोषणा-पत्र स्वीकार कर लेने के बाद प्रकाशक, समाचार,का प्रकाशन शुरू कर सकते हैं।

Indian official secrets act 1923 भारतीय सरकारी रहस्य अधिनियम, 1923

भारतीय सरकारी रहस्य अधिनियम, 1923 एक महत्त्वपूर्ण अधिनियम है। यह अधिनियम व्यक्ति को सुरक्षा के साथ-साथ सीमाओं सम्बन्धित है। इस अधिनियम में यह प्रावधान किया गया है कि पत्र और पत्रकार का यह दायित्व है कि वह देश की अखण्डता, प्रभुसत्ता और एकता को कायम रखने की दिशा में अपना रचनात्मक सहयोग दे। अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर मीडिया को राष्ट्रीय एकता और अखण्डता के साथ खिलवाड़ करने को अनुमति नहीं दी जा सकती।

इस अधिनियम के मुख्य रूप से दो भाग हैं! पहले भाग में, किसी दुश्मन देश द्वारा अपने देश में की जाने वाली आशंकित गुप्तचरी के सम्बन्ध में आवश्यक दिशा-निर्देश और प्रावधान हैं, तो दूसरे भाग का सम्बन्ध ऐसे शासकीय तथ्यों से है, जिन्हें जनहित में सरकार गुप्त और गोपनीय रखना चाहती हैं। अधिनियम के दूसरे भाग में दिए गए प्रावधान काफी हद तक मीडिया को प्रभावित करते हैं, क्योंकि सरकार की नीतियों और शासकीय कृत्यों की जानकारी आम जनता तक पहुँचाने का महती दायित्व मीडिया का ही हैं

अधिनियम के मुख्य बिन्दु

1. भारतीय गणतन्त्र का प्रभुसत्ता, अखण्डता तथा सार्वभौमिकता का प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करने के प्रयास, इस अधिनियम के तहत अपराध हैं।

2. राजकीय चिह्नों व मुहरों का गैर-कानूनी निर्माण तथा उनके विक्रय का प्रयास दण्डनीय है।

3. विदेशी एजेण्टों से सम्पर्क का प्रयास करना अवैध है।

4. स्वयं को गलत रूप से सरकारी अधिकारी बताना दण्डनीय है।

5. सरकारी मुहरों, चित्रों और गुप्त योजनाओं को किसी अनधिकृत व्यक्ति को सौंपना या प्रकाशित/प्रसारित करना अपराध है।

6. निषिद्ध स्थलों पर जाकर वहाँ के रेखाचित्र, योजना, प्रारूप के चित्र, बिन पूर्वानुमति के न तो लिए जा सकते हैं और न ही उन्हें प्रकाशित/प्रसारित किया जा सकता है। इसके तहत 2 वर्ष
सजा का प्रावधान है।

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