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Questionnaire meaning, nature, objects and importance प्रशनावली अर्थ, स्वरूप, उद्देश्य व महत्व

Questionnaire meaning, nature, objects and importance notes in hindi


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प्रशनावली का अर्थ एवं स्वरूप Questionnaire meaning and nature

प्रश्नावली प्रश्नों अथवा कथनों की एक ऐसी लिखित सूची होती है, जिसके प्रश्नों के उत्तर उत्तरदाता स्वयं लिखता है। इन प्रश्नों को एक पुस्तिका अथवा प्रपत्र के रूप में छपवाया जाता है। ये प्रपत्र या तो डाक द्वारा उत्तरदाताओं को भेजे जाते हैं, जिनके उत्तर लिखकर वे शोधकर्ता को वापस लौटा देते हैं अथवा शोधकर्ता उत्तरदाताओं को अपने सामने बैठाकर उन्हें ये पुस्तिकाएँ बाँट देता है तथा उत्तरदाता प्रश्नों को पढ़कर स्वयं उनके उत्तर लिख देते हैं।

यंग (1965) के अनुसार, “प्रश्नावली एक ऐसी प्रपत्र होती है, जिसमें उत्तरदाता स्वयं अपने विषय में लिखकर जानकारी प्रस्तुत करता है तथा जिसका उद्देश्य उत्तरदाता अथवा उसके परिवार एवं परिवार के काम-धन्धों के विषय में तथ्य अथवा अभिमत अथवा दोनों की ही जानकारी प्राप्त करना होता है।”

गुडे एवं हॉट के अनुसार, “प्रश्नावली से तात्पर्य एक ऐसे साधन से है, जिसमें एक फॉर्म के सहारे प्रश्नों के उत्तर दिए जाते हैं तथा जिसे प्रत्यर्थी स्वयं भरते हैं।”

इस तरह की परिभाषाएँ अन्य शोध वैज्ञानिकों द्वारा भी दी गई हैं। अब इस परिभाषा का यदि विश्लेषण किया जाए, तो हम निम्नांकित निष्कर्ष प्राप्त करते हैं-

1. प्रश्नावली में प्रश्नों की कड़ी या माला होती है। दूसरे शब्दों में, जब किसी शोध समस्या के चर को मापने के लिए उस चर से सम्बन्धित कई प्रश्न एक साथ तैयार कर लिए जाते हैं, तो इन प्रश्नों की कड़ी को प्रश्नावली कहा जाता है। उदाहरणार्थ, यदि प्रभुत्व जैसे व्यक्तित्व शीलगुण की माप करने के ख्याल से, प्रभुत्व से सम्बन्धित कुछ प्रश्नों की माला तैयार कर ली जाए, तो इसे हम प्रश्नावली की संज्ञा देंगे।

2. प्रश्नावली को एक फॉर्म के रूप में तैयार किया जाता है, जिसमें प्रश्न, उसके उत्तर एवं उसके उत्तर के लिए जगह, प्रत्यर्थी का नाम, पता, योग्यता आदि लिखने के लिए भी पर्याप्त स्थान होता है।

3. प्रश्नावली की एक विशेषता यह है कि इसे प्रत्यर्थी स्वयं पढ़ता है तथा पुस्तिका में छपे प्रश्नों का उत्तर भी स्वयं देता है। यह उत्तर उसे अपने पूर्व अनुभवों के आधार पर देना होता है। चूँकि प्रश्नावली में प्रत्यर्थी अपने बारे में स्वयं वर्णन करता है, इसलिए इसे कुछ विद्वानों ने आत्म-रिपोर्ट प्रविधि भी कहना पसन्द किया है।


प्रशनावली के उद्देश्य Objects of Questionnaire


अध्ययन की सुविधा तथा सरलता

प्रश्नावली द्वारा अध्ययन का प्रक्रम अपेक्षाकृत सुविधाजनक तथा सरल रहता है, क्योंकि इसमें क्षेत्र-अध्ययन से सम्बन्धित अनेक बाधाओं व कठिनाइयों से छुटकारा मिल जाता है। इसमें उत्तरदाताओं से व्यक्तिगत सम्पर्क करने, साक्षात्कार करने तथा वार्तालाप द्वारा सूचना संकलन करने का झंझट नहीं रहता।

कम खर्च तथा कम काम

प्रश्नावली अध्ययन में प्रश्नावलियों को उत्तरदाताओं के पास भेजने के लिए केवल डाक खर्च ही करना पड़ता है। यह खर्च क्षेत्र-अध्ययन के अन्तर्गत क्षेत्र कार्यकर्ताओं, अध्ययनकर्ताओं व क्षेत्र-पर्यवेक्षकों पर किए गए खर्च की अपेक्षा बहुत ही कम होता है।

दूरस्थ तथा विस्तृत क्षेत्रों का अध्ययन

प्रश्नावली द्वारा दूर-दूर के क्षेत्रों का अध्ययन सरलतापूर्वक किया जा सकता है, क्योंकि इसके अन्तर्गत प्रश्नावली को डाक-सेवा द्वारा दूर-दूर क्षेत्रों तक प्रेषित करने में कोई कठिनाई नहीं होती। अपने कमरे में बैठकर अध्ययनकर्ता इस कार्य को सफलतापूर्वक सम्पन्न कर सकता है।

द्रुतगामी अध्ययन

प्रश्नावली द्वारा अध्ययन में समय भी अपेक्षाकृत कम ही लगता है, क्योंकि इसके अन्तर्गत अध्ययन का एकमात्र साधन डाक-सेवा होती है, जिसके द्वारा सूचना संकलन के कार्य में क्षेत्र-अध्ययन जैसी देरी नहीं लगती, बल्कि सूचना प्राप्त करने का प्रक्रम द्रुतगामी रूप से सम्पन्न होता है।

व्यवस्थित तथा वस्तुपरक अध्ययन

प्रश्नावली द्वारा अध्ययन में एक निश्चित व्यवस्था तथा कठोर वस्तुपरकता निहित रहती है, क्योंकि इसमें प्रश्नों का स्वरूप, संरचना तथा संख्या निश्चित होती है, उनमें साक्षात्कार जैसी अनिश्चित स्थिति नहीं रहती, जिसमें प्रश्नों के अनुक्रम में हेर-फेर व परिवर्तन करने की निरन्तर सम्भावना रहती है।


प्रश्नावली की विशेषताएँ Qualities of Questionnaire


एक अनुसन्धान कार्य में तथ्य तथा सूचनाएँ संकलित करने के लिए सबसे अधिक उपयोग में आने वाला उपकरण प्रश्नावली है। एक अच्छी प्रश्नावली में निम्नांकित विशेषताएं होनी चाहिए-

1. प्रश्नावली में दिए गए प्रश्नों के महत्त्व को समझ सके तथा उसका सही उत्तर दे सके।

2. प्रश्नों की भाषा सरल हो तथा प्रश्न नुकीले होने चाहिए अर्थात्‌ प्रश्न से सभी लोग एक ही अर्थ निकालें। द्विअर्थक शब्दों का प्रयोग नहीं होना चाहिए।

3. यथासम्भव प्रश्नावली की लम्बाई कम होनी चाहिए, क्योंकि अधिक लम्बी प्रश्नावली से प्रत्यर्थी में मानसिक नीरसता उत्पन्न होती है और वह प्रश्नों का उत्तर छिन्न-भिन्‍न मन से दे पाता है। प्रश्नावली की लम्बाई से तात्पर्य प्रश्नावली में रखे गए प्रश्नों की संख्या से है।

4. प्रश्नों में प्रयुक्त होने वाले शब्द तथा वाक्य यथासम्भव सख्त हों ताकि उससे प्रत्यर्थी के मन में किसी प्रकार की सम्भ्रान्ति उत्पन्न न हो। प्रत्येक प्रश्न में एक ही स्पष्ट विचार सम्मिलित होना चाहिए।

5. एक प्रश्न में एक विचार निहित होना चाहिए।

6. प्रश्न वस्तुनिष्ठ होने चाहिए।

7. प्रश्नावली का निर्देश पूर्ण एवं स्पष्ट होना चाहिए।

8. प्रश्न क्रमबद्ध रूप में व्यवस्थित होने चाहिए।

9. प्रश्नों का क्रम मनोवैज्ञानिक तथा प्रभावकारी होना चाहिए। सामान्यतः प्रश्नावली में सामान्य प्रश्नों को पहले तथा विशिष्ट प्रश्नों को बाद में उपस्थित करना चाहिए या अनुकूल प्रश्नों को पहले तथा प्रतिकूल प्रश्नों को बाद में रखना चाहिए।

10. प्रश्न उत्तरदाता की भावनाओं को ठेस पहुँचाने वाले नहीं होने चाहिए।


प्रश्नावली की सीमाएं Boundaries of Questionnaire


केवल उच्च स्तर के शिक्षित व्यक्तियों का अध्ययन 
प्रश्नावली द्वारा उच्च स्तर के शिक्षित व्यक्तियों का अध्ययन ही साध्य रहता है। इसके द्वारा अशिक्षित व्यक्तियों के मतों, अभिवृत्तियों व मनोभावों आदि का अध्ययन सम्भव नहीं होता।

सार्वभौभमिक प्रश्नों की रचना में कठिनाई प्रश्नावली का उपयोग प्राय: विस्तृत समिष्टि के अध्ययन में किया जाता है, जिनमें विभिन्‍न भाषाओं वाले समूह सम्मिलित रहते हैं। ऐसे व्यक्तियों के लिए एक भाषा में प्रशनावली की रचना अनिवार्यत: उपयुक्त रहती है। दूसरी विधि शब्द व पदों के विभिन्‍न स्थानीय क्षेत्रों में प्राय: विभिन्‍न अर्थ रहते हैं, ऐसे सार्वभौमिक प्रश्नों की रचना अति कठिन रहती है, जिनका शिक्षित व्यक्ति एक समान अर्थ ही लगाएँ।

विभिन्न व्यावहारिक कठिनाइयाँ 
प्रश्नावली द्वारा अध्ययन में प्राय विभिन्न व्यावहारिक कठिनाइयाँ भी रहती हैं, जिनमें से कुछ है- अनिच्छुक उत्तरदाता को उत्तर देने के लिए अभिप्रेरित करने में कठिनाई, सूचनाओं के शुद्ध तथा नवीनतम पतों के जानने में कठिनाई, अति आवश्यक समस्या के प्रति तात्कालिक अध्ययन में कठिनाई, प्राप्त उत्तरों के अस्पष्ट लेखन के पढ़ने में कठिनाई, उत्तरदाताओं को खुलकर उत्तर न दे पाने में कठिनाई, उत्तरदाताओं द्वारा लिखकर उत्तर देने में सामान्य विमुखता अथवा उदासीनता।

पक्षपातपूर्ण प्रतिचयन 
प्रश्नावली द्वारा प्रतिदर्श के पक्षपातपुर्ण होने के दो कारण होते हैं- जब अध्ययन केवल उच्च स्तर के शिक्षित व्यक्तियों को ही सम्मिलित किया जा सकता है, तब इससे अध्ययन अपनी समष्टि का पूर्णत: प्रतिनिध्यात्मक नहीं रह पाता, यदि उच्च स्तर के शिक्षित व्यक्तियों का चयन यादृच्छिक प्रतिचयन के आधार पर किया भी जाता है, तब भी प्रतिदर्श का स्वरूप प्रतिनिध्यात्मक नही रहने पाता, क्योंकि प्रश्नावली के उत्तर भरकर उसे लौटाने वालों की संख्या कम ही रहती है। अत: प्रश्नावली के शुन्य लौटाने से प्रतिदर्श का स्वरूप पक्षपातपूर्ण हो जाता है।

अधिकांश उत्तरों का अपर्याप्त रूप में उपलब्ध होना 
प्रश्नावली द्वार अध्ययन के अधिकतर अपर्याप्त उत्तर उपलब्ध होते हैं। इसके प्राय: कुछ कारण रहते हैं- प्रश्नों का कठोर रहना, प्रश्नों के अर्थ समझने में भाषा सम्बन्धी कठिनाई, उत्तर देने में संवेगात्मक रस का अभाव, संकुचित व संक्षिप्त उत्तर, आधुनिक व्यक्ति का अति व्यस्त होना तथा विस्तृत लिखित जानकारी देने के प्रति उदासीन होना।


प्रश्नावली का बाह्मा रूप Outlook of Questionnaire


सूचनादाता को प्रश्नावली के प्रश्नों का उत्तर देने की दृष्टि से उनका ध्यान आकर्षित करने के लिए प्रश्नावली को आकर्षक बनाना आवश्यक है। प्रश्नावली का बाह्य रूप ऐसा हो कि वह सूचनादाता को प्रश्नावली पढ़ने तथा प्रश्नों के उत्तर देने के लिए आकर्षित करे।

प्रशनावली के बाह्म रूप को आकर्षक बनाने के लिए निम्नलिखित बिन्दुओं पर ध्यान देना चाहिए

1. आकार 

प्रश्नावली का आकार ऐसा होना चाहिए कि उसे मोड़कर लम्बे लिफाफे में रखकर भेजा जा सके। प्रश्नावली में पृष्ठों की संख्या कम होनी चाहिए।

2. कागज 

प्रश्नावली में प्रयुक्त होने वाला कागज मजबूत तथा चिकना होना चाहिए।


3. छपाई 

प्रश्नावली की छपाई पर विशेष ध्यान देना चाहिए।

4. प्रश्नों की व्यवस्था 

यदि प्रश्नावली में अनेक पक्षों से सम्बन्धित प्रश्न सम्मिलित किए गए हैं, तो उनको प्रत्येक इकाई के अनुसार व्यवस्थित करके छपवाना चाहिए।


5. प्रश्नों का निर्माण 

प्रश्नों का निर्माण करने के बाद विशेषज्ञों को प्रश्नावली दिखाकर प्रश्नों के गठन तथा उनके औचित्य के बारे में परामर्श लेना चाहिए। इस प्रकार की चर्चा से प्रश्नों में सुधार, कमी या विस्तार किया जा सकता है।

6. प्रश्नावली की जाँच 

प्रश्नावली की पूर्व जाँच अवश्य करनी चाहिए।पूर्व परीक्षा हेतु प्रारम्भ में कम संख्या में प्रश्नावली छपवानी चाहिए तथा कुछ व्यक्तियों से उनको भरवाकर उनके दोष ज्ञात करने चाहिए।

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