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शोध (Research) समस्या का चयन, पहचान, प्रकार, पर्यावरण part 2

शोध (Research) समस्या का चयन, पहचान, प्रकार, पर्यावरण 

Research Meaning, Definition, Objectives शोध अर्थ, परिभाषा, उद्देश्य एवं महत्व


Research Meaning, Definition, Objectives शोध अर्थ, परिभाषा



Research Meaning, Definition, Objectives शोध अर्थ, परिभाषा, उद्देश्य एवं महत्व पत्रकारिता एवं जनसंचार नोट्स व अध्ययन सामग्री mass communcation and journalism notes and study material Part 2

जनसंचार शोध में समस्या का चयन एवं उसकी पहचान

जनसंचार अनुसन्धान के सफल संचालन के लिए महत्त्वपूर्ण माना जाता है। शोध समस्या की स्पष्ट रूप से पहचान कर उसका उल्लेख करना शोधकर्ता के लिए एक कठिन कार्य होता है। सामान्यत: शोध समस्या एक ऐसी समस्या है, जिसके द्वारा दो-या-दो से अधिक चरों के बीच एक प्रश्नात्मक सम्बन्ध की अभिव्यक्ति होती है। करलिंगर महोदय ने शोध समस्या को इस प्रकार से परिभाषित किया है कि "समस्या एक ऐसा प्रश्नात्मक वाक्य या कथन होता है, जो कहता है कि दो-या-दो से अधिक चरों के बीच कैसा सम्बन्ध है?
ए आइंसटीन तथा एन इनफिल्ड के अनुसार, "समस्या का प्रतिपादन प्राय: इसके समाधान से अधिक आवश्यक है।"

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समस्या की पहचान अथवा निर्वचन


शोध समस्या के चयन के बाद उसके निर्वचन की समस्या आती है।
समस्या की पहचान का तात्पर्य उसके सभी पक्षों के स्पष्टीकरण से है।
शोधकर्ता समस्या के प्रतिपादन के पहले तक इस बात से अनजान रहता है कि उसे क्या करना है और उसे किन प्रश्नों को खोजना है? डॉ. सुरेन्द्र सिंह ने अपनी पुस्तक 'सामाजिक अनुसन्धान' में शोधकर्ता को निम्न प्रश्न स्वयं से पूछने के लिए कहा है

1. शोध की समस्या के विषय में उसकी कितनी जानकारी है?
2. जानकारी के विभिन्न स्रोत क्या हैं तथा उनकी विश्वसनीयता एवं प्रमाणिकता क्या है?
3. इस उपलब्ध जानकारी की पृष्ठभूमि में, यदि कोई हो, क्या जानकारी और प्राप्त करना चाहते हैं तथा क्यों यह जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं।
4. जिस प्रकार की जानकारी हम प्राप्त करना चाहते हैं, इसकी प्राप्ति किन-किन स्रोतों, साधनों एवं ढंगों के प्रयोग करने पर हो सकती है?
5. जिस प्रकार की जानकारी हम प्राप्त करना चाहते हैं, उस पर कितने समय, धन एवं प्रयासों की आवश्यकता होगी तथा क्या इन व्ययों के अनुसार हमें परिणाम प्राप्त होंगे?
6. जो जानकारी हम प्राप्त करना चाहते हैं, उसकी प्राप्ति के लिए किए जाने वाले प्रयासों का मार्गदर्शन किस प्रकार की मान्यताओं एवं परिकल्पनाओं के द्वारा किया जाएगा?
7. क्या इस जानकारी से, जिसे हम प्राप्त करना चाहते हैं, कितने लोग लाभान्वित हो सकते हैं तथा क्या यह जानकारी प्राप्त करना इस पर होने वाले व्यय की दृष्टि से उचित है?

आर एल एकॉफ ने अपनी पुस्तक 'द डिजाइन ऑफ सोशल रिसर्च' में शोध समस्या के प्रतिपादन में सबसे पहले इसके भिन्न-भिन्न निम्नांकित अंगभूतों को पहचानने की आवश्यकता बताई है, जो इस प्रकार हैं।

शोध उपभोक्ता 

इस श्रेणी में उन लोगों को सम्मिलित किया जाता है, जो प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से शोध से प्रभावित हों अथवा वे लोग जो शोधकर्ता के रूप में शोध कार्य संचालित करेंगे।

शोध के उद्देश्य ( Objects of Research)

उद्देश्यों के आधार पर समस्या को विशुद्ध व्यावहारिक अथवा क्रिया शोध की समस्या के रूप में देखा जा सकता है। स्पष्ट उद्देश्यों की स्थापना से प्राथमिकता को स्थापित करना तथा समस्या के समाधान को खोजने में सहायता मिलती है।

विकल्पीय साधन 

किसी भी समस्या के समाधान के लिए एक या एक से अधिक
साधनों का प्रयोग किया जा सकता है। शोधकर्ता इन सभी साधनों का उपयोग न कर समस्या के समाधान के लिए सबसे अधिक प्रभावपूर्ण साधन को प्रयोग में लाना चाहते हैं। ऐसा करने के लिए वह विकल्पीय साधनों की सूची बनाता है और सूची में से सबसे प्रभावशाली साधन का चुनाव करता है।


शोध के प्रकार ( Types of Research )

शोध तीन प्रकार के होते हैं, जो निम्नलिखित हैं-

1. मौलिक शोध मौलिक शोध सैद्धान्तिक प्रकृति का शोध है, जिसका उद्देश्य ज्ञान की वृद्धि करना है। नित नई और परिवर्तनशील परिस्थितियों के साथ समन्वय बैठाने और नई चुनौतियों का सामना करने के लिए नए-नए सिद्धान्तों और नियमों का अनुसन्धान मौलिक शोध के अन्तर्गत आता है।

2. अनुप्रयुक्‍त शोध सामाजिक जीवन के व्यावहारिक पक्ष से सम्बन्धित शोध को अनुप्रयुक्त या व्यावहारिक शोध कहा जाता है। सामाजिक नियन्त्रण, सामाजिक उपचार की दिशा में टीवी के लिए प्रोग्रामों में जरूरी सिद्धान्तों का निर्माण करना ही व्यावहारिक शोध की विषय-वस्तु है।

3. क्रियात्मक शोध क्रियात्मक शोध में वैयक्तिक साक्षात्कार का उपयोग करते हैं। कभी-कभी उसमें प्रवृत्तिमाप प्रविधि का प्रयोग भी किया जाता है। शोध की समस्याओं के लक्षण शोधकर्ता को समस्या का चयन करने से पहले उसके औचित्य एवं उपयोगिता के सम्बन्ध में विचार अवश्य कर लेना चाहिए। शोध करना न तो शोधकर्ता के लिए उपयोगी सिद्ध हो सकता है और न ही विषय की समृद्धि के लिए, जिसमें केवल शोध किया जा रहा है। समस्या के चयन के पहले उसे कुछ कसौटियों पर देख लेना उचित रहता है।

इन कसौटियों की चर्चा निम्न रूप में की जा सकती है
1. समस्या की उपयोगिता समस्या के चयन के समय उसके महत्त्व को ध्यान में रखना महत्त्वपूर्ण होता है और यह भी ध्यान देना चाहिए कि शोध से प्राप्त तथ्य शिक्षा के स्तर को ऊँचा उठाने में मददगार साबित हो सकते हैं या नहीं। किसी भी शोध की सार्थकता तभी सिद्ध हो सकती है, जब उसके फलस्वरूप वर्तमान परिस्थितियों में सुधार लाने में मदद मिल सके।

2. आवश्यक सामग्री और अन्य साधनों की उपलब्धता से कई बार समस्या अच्छी होते हुए भी आवश्यक सामग्री एवं साधनों के अभाव में शोध कार्य नहीं किया जा सकता।

3. नवीनता समस्या के चयन से पहले इस बात का पता लगा लेना चाहिए कि कहीं इस समस्या का हल पहले से तो नहीं निकाला गया है। एक समस्या पर पुन: शोध करने से हानि होती है। कई बार ऐसा देखने में आया है कि शोधकर्ताओं को कार्य समाप्त करने के बाद पता चलता है कि इस समस्या पर पहले ही पर्याप्त कार्य हो चुका है। सम्बन्धित साहित्य का पूर्ण अध्ययन न करने के कारण उच्च कोटि के वैज्ञानिक भी ऐसी भूलें कर देते हैं, जैसे-सृक्ष्म जीवाणुओं के सम्बन्ध में वैज्ञानिकों ने यह पता लगाया कि ये जीवाणु बिना श्वास क्रिया के ही जीवित रहते हैं, परन्तु यह तथ्य तो दो शताब्दी पहले ही वैज्ञानिकों ने पता लगा लिया था। यद्यपि कहने का तात्पर्य यह है कि एक उपयुक्त समस्या का पहला लक्ष्य नवीनता होना चाहिए।

4. अनुसन्धान की रुचि एवं योग्यता शोधकर्ता को ऐसी समस्या को लेना चाहिए, जिसमें उसकी रुचि हो। इस प्रक्रिया में बिना आन्तरिक प्रेरणा के उच्च कोटि का कार्य सम्भव नहीं हो पाता। समस्या में रुचि, पूर्ण रूप से बौद्धिक प्रेरणा के फलस्वरूप होनी चाहिए।

5. समय एवं आर्थिक पक्ष समस्या का चयन करते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए, कि हमारे पास कितना उपलब्ध समय है और इसमें कितना खर्च होगा? विशेष रूप से स्नातकोत्तर के विद्यार्थियों को इसका अत्यधिक ध्यान रखना चाहिए, क्योंकि उन्हें एक सीमित समय में शोध कार्य समाप्त करना है और उनके आर्थिक साधन सीमित होते हैं।


कुशलता के परिमापन

कुशलता के परिमापन के लिए निम्न कसौटियाँ प्रयोग में लाई जाती है
◆लागत को स्थिर रखते हुए पूरे किए गए कार्यों का प्रतिशत ज्ञात कीजिए।
◆समय को स्थिर रखते हुए पूर्ण किए गए कार्य का प्रतिशत निकाला जाए।
◆प्रयासों को स्थिर रखते हुए किए गए कार्य की प्रतिशत में जानकारी प्राप्त की जाए
◆पूरा किए जाने वाले कार्य का विस्तृत विवरण प्रस्तुत करते हुए उसकी पूर्ति में लगने वाले समय को निकाला जाए।
◆पूर्ण किए गए कार्य का विस्तृत विवरण प्रस्तुत करते हुए उसकी पूर्ति में लगने वाले प्रयासों का अनुमान ज्ञात किया जाए।
◆पूर्ण किए गए कार्य का विस्तृत विवरण प्रस्तुत करते हुए उसकी पूर्ति में लगने वाली लागत की गणना की जाए।

पर्यावरण

पर्यावरण से हमारा तात्पर्य उस परिस्थिति से है, जिसके अन्तर्गत हम समस्या का अध्ययन करना चाहते हैं। शोध समस्या की प्रकृति तथा इसके स्वरूप को पर्यावरण से होने वाले परिवर्तन परिवर्तित कर देते हैं।

पर्यावरण समस्या प्रतिपादन के भिन्न-भिन्न चरण निम्न हैं
1. चुने गए शीर्षक के क्षेत्र के अन्तर्गत समस्या का उचित प्रत्यक्षीकरण एवं इसको स्पष्ट पहचान होनी चाहिए।

2. समस्या को अन्वेषणीय प्रकृति की जानकारी तथा इसका स्पष्टीकरण।

3. शोध समस्या के क्षेत्र का परिसीमन ताकि सफलतापूर्वक आकार में सम्भाला जा सके।

4. समस्या से सम्बन्धित भिन्न-भिन्न मान्यताओं का तथा परिकल्पनाओं का विस्तृत विवरण।

5. समस्या के बाद आने वाले सभी पहलुओं का स्पष्ट विवरण।

6. शोध की समस्या के विषय में उसकी कितनी जानकारी है?

7. जानकारी के विभिन्‍न स्रोत क्या हैं तथा उनकी विश्वसनीयता एवं प्रमाणिकता क्या है?

8. इस उपलब्ध जानकारी की पृष्ठभूमि में, यदि कोई हो, क्या जानकारी और प्राप्त करना चाहते हैं तथा क्यों यह जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं?

9. जिस प्रकार की जानकारी हम प्राप्त करना चाहते हैं, इसकी प्राप्ति किन-किन स्रोतों, साधनों एवं ढंगों के प्रयोग करने पर हो सकती है?

10. जिस प्रकार की जानकारी हम प्राप्त करना चाहते हैं, उस पर कितने समय, धन एवं प्रयासों की आवश्यकता होगी तथा क्या इन व्ययों के अनुसार हमें परिणाम प्राप्त होंगे?

11. जो जानकारी हम प्राप्त करना चाहते हैं, उसकी प्राप्ति के लिए किए जाने वाले प्रयासों का मार्गदर्शन किस प्रकार की मान्यताओं एवं परिकल्पनाओं के द्वारा किया जाएगा?


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