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Median and Polymer Meaning, Definition, Qualities and Fault माध्यिका और बहुलक

Median and Polymer Meaning, Definition, Qualities and Fault

Median and Polymer Meaning, Definition, Qualities and Fault
           Median and Polymer Meaning, Definition, Qualities and Fault


Median and polymer meaning, definition, qualities, types and fault journalism and mass communication notes in hindi

माध्यिका या मध्याक Median


काउडन और क्लीन के अनुसार, “मध्यांक वह मूल्य है, जो श्रृंखला को इस प्रकार विभाजित करता है कि आधा या आधे से अधिक पदों के मूल्य मध्यांक के समान या कम और आधा या आधे-से अधिक मूल्य मध्यांक पद के समान या अधिक होते हैं। आरोही अथवा अवरोही क्रम में आँकड़ों को अनुविन्यासित किया जाए, तो उस श्रेणी के मध्य पद का मान मध्यांक या माध्यिका कहलाता है।”

माध्यिका के गुण Qualities of Median


1. इसको समझना सरल होता है।

2. माध्यिका को ज्ञात करना बड़ा ही आसान है।

3. खुले सिरे के वर्गों में यह एक उपयुक्त औसत है।

4. माध्यिका की परिभाषा सरल होती है।

5. यह उन आँकड़ों का सही प्रतिनिधित्व कर सकती है, जिसे प्रत्यक्ष रूप से मापना सम्भव नहीं होता, जैसे- ईमानदारी, सुन्दरता, बौद्धिकता आदि।

6. इसको ग्राफिक विधि की सहायता से भी ज्ञात किया जा सकता है।

7. इस पर सीमान्त मूल्यों का प्रभाव नहीं पड़ता।


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माध्यिका के दोष Fault of Median


1. समान्तर माध्य की तरह इसका बीजगणितीय विवेचन सम्भव नहीं है।

2. माध्यिका के लिए आँकड़ों को घटते या बढ़ते हुए क्रम में व्यवस्थित करना आवश्यक होता है लेकिन अन्य औसतों को निकालने के लिए यह आवश्यक नहीं है।

3. यह एक स्थित सम्बन्धी औसत है, इसलिए यह श्रेणी के सभी मदों पर आधारित नहीं है।

4. जब श्रेणी मदों की संख्या बहुत अधिक होती है, तो इसकी गणना क्रिया कठिन हो होती है।

5. जब श्रेणियों की संख्या सम हो तब इसकी गणना करना कठिन होता है।

बहुलक Polymer


डॉ. बाउले के अनुसार, “किसी सांख्यिकीय समूह में वर्गीकृत मात्रा का वह मूल्य, जहाँ पर पंजीकृत संख्याएँ सर्वाधिक हो या सर्वाधिक घनत्व का स्थान सबसे अधिक प्रभावशाली हो, मूल्य बहुलक कहलाता है।
Median and Polymer Meaning, Definition, Qualities and Fault
polymer
                     
L = उस वर्गान्तर की निम्नतम सीमा
f = सबसे अधिक आवृत्तियों वाले वर्गान्तर की आवृत्ति
f1 = बहुलक वाले वर्गान्तर के ठीक ऊपर वाले वर्गान्तर की आवृत्ति
f2 = बहुलक वाले वर्गान्तर के ठीक नीचे वाले वर्गान्तर की आवृत्ति
i = वर्गान्तर का आकार

मध्यमान और मध्यांक से बहुलक की गणना
सूत्र = Mode = 3 Median - 2 Mean
जब सभी आवृत्तियाँ लगभग समान हों, तब ही इसका प्रयोग किया जाता है।

बहुलक के गुण Qualities of Polymer


1. बहुमत पर आधारित होने के कारण यह सार्थक प्रतिनिधित्व करता है।

2. इसकी गणना अति सरल है।

3. यह अतिशय प्राप्तांकों के मानों से प्रभावित नहीं होता।

4. इसकी गणना अतिशय प्राप्तांकों को ज्ञात किए बिना भी की जा सकती है।

5. यह समझने में सरल होता है।


बहुलक के दोष Fault of Polymer

1. यदि प्राप्तांकों का वितरण आयताकार हो तो बहुलक निर्धारित करना कठिन हो जाता है।

2. इसका मान अधिकतर त्रुटिपूर्ण होता है। अत: इसके आधार पर निष्कर्ष दोषपूर्ण हो सकता है।

3. यदि अतिशय मानों को भी महत्त्व देता है, तो यह व्यर्थ है।


अपकिरण

साधारणत: अपकिरण के परिशुद्ध अध्ययन में एक केन्द्रीय प्रवृत्ति के माप से पदों के परिमाप के विचलन ज्ञात किए जाते हैं और फिर इन विचलकों का माध्य निकालकर उनको एकल अंक में प्रस्तुत किया जाता है, जो श्रेणी का अपकिरण निर्धारित करता है।

विधिनन विद्वानों ने अपकिरण को निस्न प्रकार से पारिधाषित किया है

बाउले के अनुसार, “अपकिरण पदों के विचलन या अन्तर का माप है।

कोनर के अनुसार, “जिस सीमा तक व्यक्तिगत पदों में भिन्‍नता होती है, उसके माप को अपकिरण कहते हैं।”

अपकिरण का दो अर्थों में प्रयोग होता है। प्रथम, अपकिरण का अर्थ पदमाला के सीमान्त पद-मूल्यों के अन्तर या सीमा विस्तार से होता है, अर्थात्‌ अपकिरण उन सीमाओं का अन्तर व्यक्त करता है, जिनके भीतर पदमाला के पद आते हैं। दूसरा, अपकिरण का अर्थ
पदमाला के माध्य से लिए गए विभिन्‍न पदों के विचलनों का माध्य है, अर्थात्‌ अपकिरण पदमाला के विभिन्‍न पदों की माध्य से औसत दूरी या विभिन्‍न पदों का माध्य के दोनों ओर बिखराव स्पष्ट करता है।


सह - सम्बन्ध

बॉडिंग्टन के अनुसार, “जब दो-या-दो से अधिक समूहों, वर्गों तथा समंक मालाओं के बीच एक निश्चित सम्बन्ध होता है, तो उसे सह-सम्बन्ध कहते हैं।”

प्रो. डब्ल्यू आई किंग के अनुसार, “दो चरों के बीच कार्यकरण सम्बन्ध को ही सह-सम्बन्ध कहा जाता है।' “

सामान्य भाषा में कहा जा सकता है कि जब दो या अधिक राशियाँ सहानुभूति में (परस्पर) परिवर्तित होती हैं जिससे एक में परिवर्तन के कारण दूसरे में भी परिवर्तन होता है, तो वे
सह-सम्बन्धित के रूप में होती हैं।

सह - सम्बन्ध के प्रकार

सह-सम्बन्ध निम्न प्रकार के होते हैं

1. धनात्मक तथा ऋणात्मक सह-सम्बन्ध

2. रेखीय तथा अरेखीय सह-सम्बन्ध

3. सरल, बहुगुणी तथा आंशिक सह-सम्बन्ध


स्मरणीय तथ्य Memorable Facts

 यदि बड़े पदों को कम तथा छोटे पदों को अधिक महत्त्व देना हो, तो गुणोत्तर माध्य
उपयुक्त है।

 समान्तर माध्य का एक दोष है कि कोई एक मूल्य न होने पर गणना सम्भव नहीं।

 कभी-कभी माध्य के द्वारा हास्यास्पद परिणाम निकलते हैं।

 बिन्दु रेखीय रीति से भूयिष्ठक सरलतापूर्वक प्रदर्शित किया जा सकता है।

 भूयिष्ठक बहुत कुछ वर्गीकरण पर निर्भर करता है। यदि वर्ग-विस्तार में परिवर्तन कर
दिया जाए, तो भूयिष्ठक भी बदल जाएगा।

 अपकिरण का सर्वप्रथम उद्देश्य श्रेणी माध्य से विभिन्‍न पद-मूल्यों की औसत दूरी ज्ञात करना है।

 विस्तार का एक दोष है कि इससे पदमाला के आकार का ठीक ज्ञान नहीं होता है।

 चतुर्थक विचलन निकालने में सीमान्त पदों का प्रभाव विस्तार की अपेक्षा कम पड़ता है।

 चतुर्थक विचलन का महत्त्वपूर्ण दोष यह है कि इसके आधार पर बीजगणितीय रीतियों का प्रयोग करके विश्लेषण करना सम्भव नहीं होता।

 प्रमाप विचलन की तुलना में माध्य विचलन की गणना की क्रिया सरल होती है।

 गणितीय दृष्टि से अशुद्ध होने के कारण माध्य विचलन का प्रयोग बीजगणित में नहीं किया जा सकता।

 यदि भूविष्ठक के दोनों ओर की आवृत्तियों का योग बराबर होता है, तो विषमता नहीं होती।

 जल माध्य तथा हरात्मक माध्य के गुणनफल गुणोत्तर माध्य के वर्ग के बराबर होता है।

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