Microphone types and uses in hindi माइक्रोफोन के प्रकार और प्रयोग

Microphone its Types and Uses माइक्रोफोन के प्रकार और प्रयोग

Microphone types and uses in hindi माइक्रोफोन के प्रकार और प्रयोग
Microphone types and uses in hindi



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माइक्रोफोन Microphone

रेडियो में माइक्रोफोन सबसे महत्त्वपूर्ण है इसके बिना कोई भी प्रसारण तकनीक सफल नहीं हो सकती। माइक्रोफोन ही वह उपकरण है, जो ध्वनि को इलेक्ट्रॉनिक सिग्नल में बदलता है, उसे टेप या कम्प्यूटर हार्ड डिस्क पर रिकॉर्ड किया जा सकता है। माइक्रोफोन अनेक प्रकार के होते हैं और अच्छे माइक्रोफोन का चयन करना पड़ता है।

संगीत के लिए बड़े माइक्रोफोन की आवश्यकता होती है, जबकि वार्ता, परिचर्चा या साक्षात्कार के लिए नेक माइक का ही प्रयोग पर्याप्त होता है। भौतिक विशेषताओं के अन्तर्गत माइक का आकार, रूप और क्षमता का ध्यान रखा जाता है। माइक्रोफोन को टेलीविजन में उस जगह लगाना पड़ता है, जहाँ वह दृश्य न हो, पर रेडियो में इस प्रकार की कोई समस्या नहीं है। उसमें तो केवल श्रव्यात्मक गुणवत्ता का ध्यान रखना पड़ता है। यह भी आवश्यक है कि माइक्रोफोन से प्रसारित होने वाली आवाज संवेदनशील हो, इसके लिए माइक्रोफोन में तकनीकी व्यवस्था भी आवश्यक है।

टेलीविजन में माइक के और भी प्रयोग हैं जहाँ एंकर सेट पर गतिशील होता है और दर्शक पर आधारित कार्यक्रम होता है। जहाँ वह हाथ में माइक लेकर एक जगह से दूसरी जगह जाता है। माइक कैमरे पर सेट रहता है। हैंडसैट माइक्रोफोन में सबसे बड़ी विशेषता यह है कि वह कहने के साथ सुनने के निर्देश भी देता है, जैसे- कमेण्ट्री के समय होता है।

माइक के अन्य रूपों में शॉटगन माइक सबसे अधिक प्रचलित है। किसी वक्ता की सुविधा के अनुसार ऊपर-नीचे तो किया ही जा सकता है, साथ ही इसे स्टैण्ड से उठाकर इसका स्थान भी बदला जा सकता है। वॉयरलेस माइक का भी बड़ा महत्त्व है। यह बिना तार का होता है और कहीं भी रेडियो तरंगों के सिग्नल को पकड़ सकता है।

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माइक्रोफोन के विभिन्‍न प्रकार Types of Microphone

इलेक्ट्रॉनिक मीडिया लेखन में माइक्रोफोन के प्रकारों का इस प्रकार वर्ण किया है-

मूविंग कोइल (डायनॉमिक) माइक्रोफोन

इस तरह के माइक्रोफोन में एक स्थायी चुम्बक होता है तथा डायाफार्म के ऊपर एक तारों की कुण्डली होती है, जिसे चुम्बकीय क्षेत्र में रखते हैं। जब ध्वनि तरंगें डायाफार्म पर आकर टकराती हैं, तो इनमें कम्पन होता है। डायाफार्म पर लगी कुण्डली में भी कम्पन होता है, जिससे चुम्बकीय बल द्वारा ईएमएफ कुण्डली में उत्पन्न होता है।

यद्यपि कुण्डली का ईएमएफ बहुत कम होता है, किन्तु सही तरकीब से बनाए गए माइक्रोफोन में ईएमएफ ध्वनि तरंगों का सही प्रतीक होता है, जिसे परिवर्द्धन द्वारा ध्वनि में परिवर्तित किया जाता है। डायनॉमिक माइक्रोफोन सभी दिशाओं में कार्य कर सकते हैं। मूविंग कोइल माइक्रोफोन पर वायुमण्डल का प्रभाव नहीं होता है। इस कारण ये लम्बे समय तक एक अच्छी तरह कार्य कर सकते हैं। इन माइक्रोफोन का प्रयोग पब्लिक एड्रेस सिस्टम, आकाशवाणी एवं अन्य बाहरी रिकॉर्डिंग में किया जाता है।


कार्बन माइक्रोफोन

कार्बन माइक्रोफोन कार्बन के कणों में ध्वनि के दबाव के कारण प्रतिरोध परिवर्तन के सिद्धान्त पर कार्य करता है। कार्बन माइक्रोफोन सब दिशाओं में कार्य करता है। इसका आउटपुट आधे, कम मूल्य और अधिक समय तक कार्य करने की क्षमता रखता है।
इनका सबसे अधिक उपयोग टेलीफोन व रेडियो संचार में किया जाता है। कार्बन माइक्रोफोन का फ्रीक्वेंसी रेसपोंस कम होता है, इसलिए उसका उपयोग जहाँ ध्वनि की गुणवत्ता प्रमुख होती है, नहीं करते हैं।


कण्डेन्सर माइक्रोफोन

कण्डेन्सर माइक्रोफोन धातु के डायाफार्म पर फिक्स प्लेट के मध्य बदलते केपिसिटेंस के सिद्धान्त पर कार्य करता है। कण्डेन्सर माइक्रोफोन में एक पतली धातु (स्टील या एल्युमीनियम) की डायाफार्म से 25 से 40 माइक्रोमीटर की समान स्तर दूरी पर एक प्लेट लगी होती है। ध्वनि तरंगें डायाफार्म से टकराती हैं तथा ध्वनि तरंगों के दबाव से डायाफार्म व फिक्स प्लेट में केपिसिटेंस के बदलाव के कारण एक रेजिस्टेंस द्वारा वोल्टेज ड्राप को सीरिज में माइक्रोफोन से जोड़ देते हैं। सारे सर्किट को एक बैटरी से जोड़ देते हैं, जिससे आवश्यक करण्ट मिलता है। ध्वनि फ्रीक्वेन्सी पर कण्डेन्सर माइक्रोफोन का इम्पीडेन्स बहुत अधिक होता है। 100 हर्ट्ज पर इसका इम्पीडेन्स लगभग 28 मेगा ओम का होता है। इस माइक्रोफोन का फ्रीक्वेंसी रेसपॉन्स बहुत अच्छा होता है तथा डिस्टॉरेशन बहुत कम होता है।


रिबन/वेलोसिटी माइक्रोफोन

रिबन माइक्रोफोन ध्वनि के दबाव के उत्तार- चढ़ाव के सिद्धान्त पर कार्य करता है अर्थात घूमने वाले तत्व ड्राइंविग दबाव का अनुपात दोनों ओर के  दबाव के अंतर के अनुसार होता है। रिबन माइक्रोफोन में एल्यूमीनियम  फ़ाइल का रिबन स्थायी चुम्बक के क्षेत्र में होता हैं। स्थायी चुम्बक के पोल विशेष आकृति के होते हैं, जिन कारण अधिक-से-अधिक चुम्बकीय क्षेत्र बन सके। रिबन दोनों अर्थात माइक्रोफोन का चालक का काम करता हैं। रिबन की लंबाई 0.1 एमएम व मोटाई 2.4 एमएम के लगभग होती है। रिबन केवल एक ही दिशा में ध्वनि तरंगों की गति के अनुसार घूमता है।

जब रिबन ध्वनि तरंगों के कारण घूमता है, तो इलेक्ट्रो इलेक्ट्रो डायनामिक वोल्टेज उत्पन्न होता है। यह उत्पन्न वोल्टेज बहुत कम होती है। इसलिए टांसफॉर्मर की सहायता से लगभग 50 गुणा बढ़ाया जाता है। कार्बन माइक्रोफोन का प्रयोग कार्यक्रम के सम्तुलन के लिए सबसे अच्छा है। आर्केस्ट्रा से अधिक शक्ति वाले यंत्रों को कार्बन माइक्रोफोन की डेड साइड की ओर तथा कम आवाज वोले यन्त्र को सामने रखने से ध्वनि सन्तुलित मिलती है। ये बाहरी रिकॉर्डिंग के लिए उपयुक्त नहीं है, किन्तु स्टूडियो के लिए अच्छा हैं।


स्पेशल माइक्रोफोन Special Microphones

एकेजी 202 इनमें दो डायनमिक माइक्रोफोन होते हैं, जिससे फ़ीक्वेसी रीसपॉन्स प्लेट मिलती है।

वेस्टर्ड इलेक्ट्रिक 639 माइक्रोफोन में एक डायनामिक और रिबन माइक्रोफोन होता है, जिससे कारडाइड पैटर्न मिलता है।

लिप रिबन माइक्रोफोन यह शौर पिकअप नहीं करता है, क्योंकि इसमें रिबन एक धातु की डिबिया में होता है तथा इसमें लगी स्टील की जाली 'विंड-शिल्ड' का कार्य करता है।

लेपल माइक्रोफोन ये कार्बन एवं रिबन दोनों प्रकार के होते हैं। इनके साइज बहुत छोटे और हल्के होते हैं, जिन्हें कॉलर पर भी लगाया जा सकता है।

कॉण्टेक्ड माइक्रोफोन ये साधारणतया डायनॉमिक माइक्रोफोन होते हैं, जिनकी संवेदनशीलता कम होती है। इसे कलाकार/वस्तु के पास रखते हैं। यह अवांछित ध्वनि पिकअप नहीं करता है।

ग़न-माइक ये दो प्रकार के होते हैं। एक छोडी गन व दूसरा बड़ी गन वाला।
इसमें डायनामिक माइक बारीक छिद्रों वाली टयूब के आगे वाले भाग में लगा होता है। छोटी गन वाला माइक लगभग 18 इंच लम्बा होता है, जो 20 से 25 फुट तक की दूरी से ध्वनि पिकअप कर सकता है। इस माइक की गुणवत्ता कम होती है, किन्तु इसका उपयोग ध्वनि की दूरी के पिकअप के लिए किया जाता है, जैसे कि क्रिकेट में गेंद की बैट से टकराने से उत्पन्न ध्वनि।

इलैक्ट्रॉनिक मीडिया में बेहतरीन रिकॉडिग और नियंत्रण के लिए निम्न प्रक्रियाओं का विवेचन किया गया है-

विभिन्न श्रव्य स्त्रोतों में से सही ध्वनि का चयन और फिर उसका नियंत्रण

आवाज की मात्रा , स्तर पर बराबर नियंत्रण रखना।

कार्यक्रम की ध्वनि को परखना और निर्देशक से आवश्यक विषय पर संवाद करना।

श्रव्यात्मक गुणवत्ता निरंतर बनाये रखना।

पिक्चर मोनिटर को देखते हुए उसमें ध्वनि नियंत्रित करना।


माइक्रोफोन, एम्पलीफायर तथा
लाउडस्पीकर Microphone, Amplifier and Loudspeaker

बहुत बड़े जनसमुदाय अथवा भीड़ को सम्बोधित करने के लिए कुछ विशेष यन्त्र जैसे- माइक्रोफोन, एम्प्लीफायर अथवा लाउडस्पीकर की जरूरत पड़ती है। ऐसे यन्त्र प्रसार शिक्षण हेतु बेहद उपयोगी साबित होते हैं। इसके माध्यम से एक ही बार में कई हजार
लोगों तक उपयोगी जानकारियाँ पहुँचाई जा सकती हैं। माइक्रोफोन एवं पिक-अप को एम्प्लीफायर या ध्वनि विस्तारक यन्त्र के इनपुट टर्मिनल से जोड़ा जाता है और लाउडस्पीकर को आउटपुट टर्मिनल से संलग्न किया जाता है। माइक्रोफोन ध्वनि-तरंगों को विद्युत धारा में परिवर्तित करता है और एम्प्लीफायर में भेजता है।

एम्प्लीफायर एक इलेक्ट्रॉनिक यन्त्र होता है, जो इस विद्युत धारा को विस्तारित करता है। यह विस्तारित विद्युत धारा आवाज की तरंगों के अनुरूप कम-अधिक होती रहती है। जब यह विस्तारित विद्युत धारा लाउडस्पीकर में प्रवेश करती है, तो यह आवाज की तरंगों में परिवर्तित हो जाती है, जिससे हमें स्पीकर की तेज आवाज सुनाई पड़ती है। इस पूरी प्रक्रिया को पूरा होने में मात्र कुछ सेकेण्ड्स का समय लगता है, इसीलिए माइक्रोफोन द्वारा कैच की गई आवाज उसी समय लाउडस्पीकर से सुनाई देती है। एम्प्लीफायर को क्रियान्वित करने के लिए विद्युत की आवश्यकता होती है, जो या तो शुष्क बैटरी, आर्द्र बैटरी अथवा एसी या डीसी पावर सप्लाई से प्राप्त होती है।

माइक्रोफोन का उपयोग करते समय ध्यान दी जाने वाली कुछ जरूरी बातें


1. माइक्रोफोन को लगाने के बाद उसका परीक्षण करने के लिए बार-बार कुछ शब्दों को बोलकर देखना चाहिए।

2. कभी भी मुँह से हवा निकालकर उसमें फूँक नहीं मारना चाहिए, क्योंकि इस आर्द्र हवा से माइक्रोफोन की संवेदनशीलता कुप्रभावित हो सकती है।

3. माइक्रोफोन को वक्ता से करीब 10 इंच की दूरी पर रखा जाना चाहिए।

4. जब परीक्षण द्वारा यह सुनिश्चित हो जाए कि माइक्रोफोन आवाज ग्रहण कर रहा है, तो आवाज व टोन नियन्त्रण द्वारा इच्छित आवाज की तीव्रता को नियन्त्रित करना चाहिए।


माइक्रोफोन के लाभ Advantage of Microphone

वक्ता का स्वर एक सीमित क्षेत्र तक ही पहुँच पाता है, इसलिए बहुत बड़ी सभा को सम्बोधित करने के लिए माइक्रोफोन का उपयोग लाभकारी होता है।

माइक्रोफोन द्वारा टेप किए गए संदेशों व वार्ताओं को भी प्रसारित किया जा सकता है तथा प्रचार-प्रसार हेतु उनका उपयोग किया जा सकता है।

माइक्रोफोन का उपधोग नाटक, गायन, प्रदर्शन आदि कार्यक्रमों में भी किया जा सकता है।


माइक्रोफोन की हानियाँ Disadvantage of Microphone

ये उपकरण काफी महँगे होते हैं, इसलिए इन्हें प्राय: विशेष अवसरों पर ही प्रयोग किया जाता है।

वैसे तो माइक्रोफोन को किराए पर लेकर ही प्रयोग किया जा सकता है, क्योंकि इसमें खर्च काफी अधिक होता है।

माइक्रोफोन, एम्पलीफायर तथा लाउडस्पीकर आदि उपकरणों का प्रयोग हर कोई नही कर सकता, बल्कि इसके लिए किसी जानकार व्यक्ति की आवश्यकता होती है।


Facts

 आकाशवाणी के समाचार-कक्ष की शुरूआत वर्ष 1986 में हुई।

 आकाशवाणी से न्यूजरील कार्यक्रम का प्रसारण 12 मार्च, 1955 को हुआ।

आकाशवाणी से टेलीफोन पर समाचार देने की सुविधा 28 फरवरी, 1998 से प्रारम्भ हुई।

 मुम्बई से मल्टी ट्रैक रिकॉर्डिंग स्टूडियो ने 10 सितम्बर, 1994 को काम करना शुरू कर दिया।

 वर्ष 1990 में प्रसार भारती अधिनियम पारित किया गया।

 वर्ष 1965 से भारत में दूरदर्शन की नियमित सेवा प्रारम्भ हुई।

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